क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥२-६३॥
क्रोध से अत्यन्त मूढ भाव उत्पन्न हो जाता है, मूढ भाव से स्मृति में भ्रम हो जाता है, स्मृति में भ्रम हो जाने से बुध्दि अर्थात ज्ञानशक्ति का नाश हो जाता है और बुध्दि का नाश हो जाने से यह पुरुष अपनी स्थिति से गिर जाता है।
"Thinking constantly (chintan) on the objects of senses, a man develops attachment for them; from the attachment springs desire, and from desire (obstruction in fulfillment) ensues anger. From anger arises delusion (foolishness); from delusion, confusion of memory; which results in loss of reasoning/discrimination (Viveka), and with loss of reasoning/discrimination, he oes to complete ruin."
No comments:
Post a Comment