Thursday, 31 October 2013

नरक से मुक्ति



एतैर्विमुक्तः कौन्तेय तमोद्वारैस्त्रिभि र्नरः। 
आचरत्यात्मनः श्रेयस्ततो याति परां गतिम्।।

हे कुन्तीपुत्र ! जो व्यक्ति इन तीनों नरक - द्वारों से बच पाता है , वह आत्म - साक्षात्कार के लिये कल्याणकारी कार्य करता है और इस प्रकार क्रमशः परम गति को प्राप्त होता है। 

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