एतैर्विमुक्तः कौन्तेय तमोद्वारैस्त्रिभि र्नरः।
आचरत्यात्मनः श्रेयस्ततो याति परां गतिम्।।
हे कुन्तीपुत्र ! जो व्यक्ति इन तीनों नरक - द्वारों से बच पाता है , वह आत्म - साक्षात्कार के लिये कल्याणकारी कार्य करता है और इस प्रकार क्रमशः परम गति को प्राप्त होता है।
No comments:
Post a Comment