अपनी बुद्धि से शुद्ध होकर तथा धैयपूर्वक मन को वश में करते हुए, इन्द्रियतृप्ति के विषयों क त्याग कर, राग तथा द्वेष से मुक्त होकर जो व्यक्ति एकांत स्थान में वास करता है, जो थोडा खाता है, जो अपने शरीर मन तथा वाणी को वश में रखता है तथा पूर्णतया विरक्त, मिथ्या अहंकार, मिथ्या शक्ति, मिथ्या गर्व, काम, क्रोध तथा भौतिक वस्तुओं के संग्रह से मुक्त है, जो मिथ्या स्वामित्व की भावना से रहित तथा शांत है वह निश्चय ही आत्म-साक्षात्कार के पद को प्राप्त होता है.
No comments:
Post a Comment