ये चैव सात्त्विका भावा राजसास्तामसाश्र्च ये।
मत्त एवेति तान्विध्दि न त्वहं तेषु ते मयि।।
भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं " तुम जान लो मेरी शक्ति द्वारा सारे गुण प्रकट होते हैं , चाहे वे सतोगुण हों , रजोगुण हों या तमोगुण हों। एक प्रकार से मैं सब कुछ हूँ , किन्तु हूँ स्वतंत्र। मैं प्रकृति के गुणों के आधीन नहीं हूँ , अपितु वे मेरे आधीन हैं।
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