कृष्ण का नाम सुनते ही कभी मुरलीधर, तो कभी माखन चुराते एक नटखट बालक, तो कभी चक्र से राक्षसों का संहार करते, तो कभी निराश अर्जुन को ज्ञान देते हुए, तो कभी गोपियों के साथ रास रचाते हुए एक छवि उभरती है। यह छवि अप्रतिम सौंदर्य, अनंत ज्ञान एवं अवर्णननीय आनंद का एक मात्र स्रोत है। कृष्ण एक किंवदंती, एक कथा, एक गाथा हैं; जिनके अनेक रूप हैं और हर रूप की अदभुत लीलायें हैं। कृष्ण जितने प्राचीन हैं , उतने ही आधुनिक। जितने ही साधारण हैं , उतने ही असाधारण। कृष्ण का जीवन एक सम्पूर्ण पुरुषोत्तम का जीवन है। दूसरे शब्दों में वे संपूर्ण ऐश्वर्य , धर्म , यश , श्री , ज्ञान और वैराग्य को धारण करने वाले हैं।
ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशसश्श्रिय: ।
ज्ञान वैराग्ययोश्चश्चैव पण्णाम् भग इतिरणा।।
उनक़ा अवतरण लोक कल्याण एवं धरती को पापमुक्त बनाने तथा समाज में व्यवस्था को पुनः स्थापित करने के लिए हुआ था। श्रीमद्भगवद् गीता में कृष्ण कहते हैं :- "मैं सृष्टि के आदि में हूँ और मैं ही इस सृष्टि के अंत का कारण भी हूँ।
अहमात्मा गुडाकेशा सर्वभूताशयस्तिथि: ।
अहमादिश्र्च मध्यम् च भूतानामन्त एव च।।
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