जो कर्म मनुष्य की ऊर्जा से प्रकट होता है वह शुभ ही होगा। आवश्यक नही है कि वासना न हो तो कर्म नही होगा। हमारे जीवन का अनुभव भी यही है कि जो कर्म हमसे सहज फूटता है वह हमें आनंद तो देता ही है , परिवेश भी उस कर्म की सुगंध से सुवासित होता है। वासना छूटी कि अशुभ कर्म स्वत: ही छूट जाता है, वृक्ष बनना ,नदी का बहना , चिड़ियों का चहचहाना , सूरज का उदय होना आदि। केशव कहते है की कर्म अपने में "आनंद" है अपने में फल है। पलायनवाद, नकारात्मकता, घर छोड़ कर जंगल भागना ये सब अकर्मण्यता के उदाहरण हैं।
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