Tuesday 24 December 2013

सात्त्विक त्याग


कार्यमित्येव यत्कर्म नियतं क्रियतेअर्जुन। 
सङ्गं त्यक्तवा फलं चैव स त्यागः सात्त्विको मतः।।

हे अर्जुन ! जब मनुष्य नियत कर्तव्य को करणीय मान कर करता है तथा समस्त भौतिक संगति और फल की आसक्ति को त्याग देता है , तो उसका त्याग सात्त्विक कहलाता है। 

O Arjuna, one who performs routine works as a matter of duty, and abandons attachment and fruitive desire such a person performs renunciation of the nature of goodness. This is My opinion. 

2 comments:

  1. मित्र! आज 'क्रिसमस-दिवस' पर शुभ कामनाएं,! सब को सेंटा क्लाज सी उदारता दे और ईसा मसीह सी 'प्रेम-शक्ति'!
    यही निस्वार्थ्त्याग सराहनीय और स्वर्ग-सुलभ है !

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