Wednesday 16 October 2013

स्वधर्मे निधनं श्रेय: परधर्मो भयावह :

श्रेयांस्वधर्मो विगुण: परधर्मात्स्वनुष्ठितात। 
स्वधर्मे  निधनं श्रेय:    परधर्मो      भयावह:। ।   

अपने नियत कर्मों को दोषपूर्ण ढंग से संपन्न करना भी अन्य  के कर्मों को भलीभांति करने से  श्रेष्ठ है। अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए मरना पराये कर्मों में प्रवृत होने की अपेक्षा अधिक  उत्तम है,  क्योंकि अन्य किसी के मार्ग का अनुसरण भयावह होता है।  

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