Monday 17 March 2014

मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है- श्रीमदभगवद्गीता


1.       मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है.जैसा वो विश्वास करता है वैसा वो बन जाता है.

2.       उससे मत डरो जो वास्तविक नहीं है, ना कभी था ना कभी होगा.जो वास्तविक है, वो हमेशा था और उसे कभी नष्ट नहीं किया जा सकता.

3.       सभी अच्छे काम छोड़ कर बस भगवान में पूर्ण रूप से समर्पित हो जाओ. मैं तुम्हे सभी पापों से मुक्त कर दूंगा. शोक मत करो.

4.       मैं उन्हें ज्ञान देता हूँ जो सदा मुझसे जुड़े रहते हैं और जो मुझसे प्रेम करते हैं.

5.       मैं धरती की मधुर सुगंध हूँ . मैं अग्नि की ऊष्मा हूँ, सभी जीवित प्राणियों का जीवन और सन्यासियों का आत्मसंयम हूँ.

6.       कर्म मुझे बांधता नहीं, क्योंकि मुझे कर्म के प्रतिफल की कोई इच्छा नहीं.

7.    मैं  ऊष्मा  देता  हूँ , मैं  वर्षा करता हूँ  और  रोकता  भी हूँ , मैं  अमरत्व   भी  हूँ  और  मृत्यु  भी .

8.       वह  जो  मृत्यु  के  समय  मुझे  स्मरण  करते  हुए  अपना  शरीर  त्यागता  है, वह  मेरे  धाम   को प्राप्त  होता  है . इसमें  कोई  शंशय  नहीं है .

9.       ऐसा  कुछ  भी  नहीं  , चेतन  या  अचेतन  , जो  मेरे  बिना  अस्तित्व  में  रह  सकता  हो

10.   अपने परम भक्तों, जो हमेशा मेरा स्मरण या एक-चित्त मन से मेरा पूजन करते हैं , मैं व्यक्तिगत रूप से  उनके कल्याण का उत्तरदायित्व  लेता हूँ.

11.   मैं सभी प्राणियों को सामान रूप से देखता हूँ; ना कोई मुझे कम प्रिय है ना अधिक. लेकिन जो मेरी प्रेमपूर्वक आराधना करते हैं वो मेरे भीतर रहते हैं और मैं उनके जीवन में आता हूँ.

12.   मेरी कृपा से कोई  सभी कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए भी बस मेरी शरण में आकर  अनंत अविनाशी निवास को प्राप्त करता है.

Tuesday 11 March 2014

जन्म-मृत्यु के सागर से शीघ्र उद्धार


ये तु सर्वाणि कर्माणि मयि संन्यस्य मत्पराः। 
अनन्येनैव योगेन मां ध्यायन्त उपासते।।
तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युसंसारसागरात्। 
भवामि न चिरातपार्थ मय्यवेशितचेतसाम्।।

जो अपने सारे कार्यों को मुझमें अर्पित करके तथा अविचलित भाव से मेरी भक्ति करते हुए मेरी पूजा करते हैं और अपने चित्तों को मुझ पर करके निरंतर मेरा ध्यान करते हैं , उनके लिए हे पार्थ ! मैं जन्म-मृत्यु के सागर से शीघ्र उद्धार करने वाला हूँ। 

But those who offer their every action unto Me, take refuge in Me alone, think of Me constantly in pure devotion unadulterated by exploitation or renunciation, and who thus worship and adore Me O Partha, I swiftly deliver those devoted souls from the deathly ocean of material suffering.