योगसंन्यस्तकर्माणं ज्ञानसंछिन्नसंशयम्।
आत्मवन्तं न कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय।।४. ४१।।
जो व्यक्ति अपने कर्मफलों का परित्याग करते हुए भक्ति करता है और जिसके संशय दिव्यज्ञान द्वारा विनिष्ट हो चुके होते हैं वही वास्तव में आत्मपरायण है। हे धनञ्जय ! वह कर्मों के बंधन से नहीं बँधता।
Work (Karm) does not bind a person who has renounced work --- by renouncing the fruits of work --- through KarmaYog, and whose doubts about the Self are completely destroyed by Vivek, the application of Self-knowledge, O Arjun.
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