आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत्।
तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिमाप्नोति न कामकामी।।
जो पुरुष समुन्द्र में निरन्तर प्रवेश करती रहने वाली नदियों के समान इच्छाओं के निरन्तर प्रवाह से विचलित नहीं होता और जो सदैव स्थिर रहता है , वही शान्ति प्राप्त कर सकता है , वह नहीं जो ऐसी इच्छाओं को तुष्ट करने की चेष्टा करता हो।
A person who is not disturbed by the incessant flow of desires--that enter like rivers into the ocean which is ever being filled but is always still--can alone achieve peace, and not the man who strives to satisfy such desires.
शांति के एकमात्र और अनंत स्रोत : हरे कृष्णा
ReplyDelete