समः अहम् सर्वभूतेषु न मे द्वेष्यः अस्ति न प्रियः।
ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम्।।
मैं न तो किसी से द्वेष करता हूँ , न किसी के साथ पक्षपात करता हूँ। मैं सभी के लिए समभाव हूँ। किन्तु जो भी भक्तिपूर्वक मेरी सेवा करता है , वह मेरा मित्र है , मुझमें स्थिर रहता है और मैं भी उसका मित्र हूँ।
I am equally disposed to all living entities; there is neither friend nor foe to me; but those who with loving sentiments render devotional service unto Me, such person are in Me and I am in them.
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