कविं पुराणमनुशासितारमणोरणीयांसमनुस्मरेद्यः।
सर्वस्य धातारमचिन्त्यरूपमादित्यवर्णं तमसः परस्तात्।।
मनुष्य को चाहिये कि परमपुरुष का ध्यान सर्वज्ञ , पुरातन , नियन्ता , लघुतम से भी लघुतर , प्रत्येक का पालनकर्ता , समस्त भौतिकबुद्धि से परे , अचिन्त्य तथा नित्य पुरुष के रूप में करे। वे सूर्य की भाँति तेजवान हैं और इस भौतिक प्रकृति से परे , दिव्य रूप हैं।
one should meditate on the omniscient, primordial, the controller, smaller that atom, yet the maintainer of the everything, whose form is inconceivable, resplendent like the sun and totally transcendental to the material nature.
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