Friday, 29 November 2013

ज्ञान तथा अज्ञान - कुछ भी रहस्य नहीं !


अमानित्वमदम्भित्वमहिंस क्षान्तिरार्जवम्। 
आचार्योपासनं शौचं स्थैर्यमात्मविनिग्रहः।।
इन्द्रियार्थेषु वैराग्यमनहंकार एव च। 
जन्ममृत्यु ज्र्व्याधिदुःखदोषानुदर्शनम्।।
असक्तिरनभिष्वङ्गः पुत्रदारगृहादिषु। 
नित्यं च समचित्तत्वमिष्टानिष्टोपपत्तिषु।।
मयि चानन्ययोगेन भक्तिरव्यभिचारिणी। 
विविक्तदेशसेवित्वमरतिर्जनसंसदि।।
अध्यात्मज्ञाननित्यत्वम्  तत्त्वज्ञानार्थदर्शनम्। 
एतज्ज्ञानमिति प्रोक्तमज्ञानं यादतोन्यथा।।


विनम्रता , दम्भहीनता , अहिंसा , सहिष्णुता , सरलता , प्रामाणिक गुरु के पास जाना , पवित्रता , स्थिरता , आत्मसंयम , इंद्रियतृप्ति के विषयों का परित्याग , अहंकार का अभाव , जन्म , मृत्यु वृद्धावस्था तथा रोग के दोषों की अनुभूति , वैराग्य , संतान , स्त्री , घर , तथा अन्य वस्तुओं की ममता से मुक्ति , अच्छी तथा बुरी घटनाओं के प्रति समभाव , मेरे (भगवान  श्रीकृष्ण ) प्रति निरंतर अनन्य भक्ति , एकांत स्थान में रहने की इच्छा , जन समूह से विलगाव , आत्म - साक्षात्कार की महत्ता को स्वीकारना , तथा परम सत्य की दार्शनिक खोज - इन सब को मैं ज्ञान घोषित करता हूँ और इनके अतिरिक्त जो भी है , वह सब अज्ञान है।    

Humility, pridelessness, nonviolence, tolerance, honesty, service to the guru, purity, stability, self-control, detachment from sensual delights, absence of egotism, an objective view of the miserable defects of material life, that is, birth, death, the infirmity of old age, disease, etc., freedom from infatuation with wife, son, home, etc., nonabsorption in the happiness and unhappiness of others, constant equal-mindedness in the contact of desirable or undesirable objects, unfaltering and unadulterated devotion to Me, preference for solitude, indifference to mundane socializing, perception of the eternality of self-knowledge, and realization of the goal of divine knowledge certainly all these have been declared as actual knowledge, and everything apart from this is ignorance.

Thursday, 28 November 2013

श्रद्धा के बिना यज्ञ , दान या तप


अश्रद्धया हुतं दत्तं तपस्तप्तं कृतं च यत्। 
असदित्युच्यते पार्थ न च तत्प्रेत्य नो इह।।

हे पार्थ ! श्रद्धा के बिना यज्ञ , दान या तप के रूप में जो भी किया जाता है , वह नश्वर है।  वह 'असत् ' कहलाता है तथा इस जन्म एवं अगले जन्म - दोनों में ही व्यर्थ जाता है। 

O Partha, sacrifice, charity, and austerity, or any duty performed without faith in the supreme objective, is known as 'asat', or depraved. Such works can never bestow an auspicious result, either in this world or the next. 

पाँच कर्म के कारण


अधिष्ठानं तथा कर्ता करणं च पृथग्धिम्। 
विविधाश्च पृथक्चेष्ठा दैवं चैवात्र पञ्चमम्।।

कर्म का स्थान (शरीर ), कर्ता , विभिन्न इन्द्रियाँ , अनेक प्रकार की चेष्टाएँ तथा परमात्मा - ये पाँच कर्म के कारण हैं। 

(With the help of these five factors, all actions are effected:) 
The body, ego (in the form of the knot of spirit and matter), the separate senses, the different endeavors, and destiny, or the intervention of the Supreme Universal Controller. 

Wednesday, 27 November 2013

निर्दिष्ट कर्म कभी पाप से प्रभावित नहीं होते


श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मोत्स्वनुष्ठितात्। 
स्वभावनियतं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम्।।

अपने वृत्तिपरक कार्य को करना , चाहे वह कितना ही त्रुटिपूर्ण ढंग से क्यों न किया जाये , अन्य किसी के कार्य को स्वीकार करने तथा अच्छी प्रकार करने की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ है। अपने स्वभाव के अनुसार निर्दिष्ट कर्म कभी पाप से प्रभावित नहीं होते। 

Although there may be imperfections in their execution, it is better to remain faithful to one's natural prescribed duties than to perform another's duties immaculately. Sin is never incurred by a man conforming to his natural duties.   

Monday, 25 November 2013

Sankhya Yoga


Sankhya Yoga teaches that there is an indestructible, Universal Soul. Krishna asked Arjuna to do his duty, renounce the fruit of his actions, realize the impermanence of sense-objects, and give up ego and attachment. Sankhya Yoga is the way of the wise, who can reason the Truth and think their way to detachment, simplicity, and lack of ego. My personal analogy is this: a wave that identifies with the ocean is eternal. A person who identifies with the universe is eternal. It is not I versus the Universe or I and the Universe – it is "I am the Universe."

Saturday, 23 November 2013

श्रीकृष्ण और श्रीमद्भगवद् गीता


अध्येष्यते च य एमं धम् र्यं संवादमावयोः। 
ज्ञानयज्ञेन तेनाहमिष्टः स्यामिति मे मतिः।।
श्रद्धावाननसूयश्च श्रृणुयादपि यो नरः। 
सःअपि मुक्तः शुभांल्लोकांपराप्नुयात्पुण्यकर्मणाम्।।  

भगवान  श्रीकृष्ण गीता संवाद के सापेक्ष कहते हैं कि :

"और मैं घोषित करता हूँ कि जो हमारे इस पवित्र संवाद का अध्ययन करता है , वह अपनी बुद्धि से मेरी पूजा करता है।  और जो श्रृद्धा समेत तथा द्वेषरहित होकर इसे सुनता है , वह सारे पापों से मुक्त हो जाता है और उन शुभ लोकों को प्राप्त होता है , जहाँ पुण्यात्माएँ निवास करती हैं। "

And for one who will study this most righteous discourse of ours; I shall be propitiated by that as a performance of sacrifice of wisdom; this is My proclamation. Even the person who only listens to this with faith and without envy is liberated and will reach the elevated planetary system of those of virtuous activities.  

Friday, 22 November 2013

कर्मयोग रहस्य ...भाग ४


तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर। 
असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पूरुषः।।


अतः कर्मफल में आसक्त हुए बिना मनुष्य को अपना कर्तव्य समझ कर निरन्तर कर्म करते रहना चाहिए क्योंकि अनासक्त होकर कर्म करने से उसे परब्रह्म की प्राप्ति होती है। 

Therefore without attachment, without interruption, perfectly perform prescribed actions; since by performing prescribed actions a person achieves the highest good. 

Thursday, 21 November 2013

जीवों के विविध गुण


बुद्धिर्ज्ञानमसम्मोहः क्षमा सत्यं दमः शमः। 
सुखं दुःखं भवः  अभावः भयं चाभयमेव च।।
अहिंसा समता तुष्टिस्तपो दानं यशोअयशः। 
भवन्ति भावा भूतानां मत्त एव पृथग्विधाः।।

बुद्धि , ज्ञान , संयश तथा मोह से मुक्ति , क्षमाभाव , सत्यता , इन्द्रियनिग्रह , मननिग्रह , सुख तथा दुःख , जन्म , मृत्यु , भय , अभय , अहिंसा , समता , तुष्टि , तप , दान , यश , तथा अपयश - जीवों के ये विविध गुण मेरे ही द्वारा उत्पन्न हैं।  

Spiritual intelligence, knowledge, freedom from false perception, compassion, truthfulness, control of the senses, control of the mind, happiness, unhappiness, birth, death, fear and fearlessness, nonviolence, equanimity, contentment, austerity, charity, fame infamy: all these variegated diverse qualities of all living entities originate from Me alone.

Tuesday, 19 November 2013

परमात्मा का रहस्य …भाग २


समः अहम् सर्वभूतेषु न मे द्वेष्यः अस्ति न प्रियः।
ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम्।।

मैं न तो किसी से द्वेष करता हूँ , न किसी के साथ पक्षपात करता हूँ।  मैं सभी के लिए समभाव हूँ। किन्तु जो भी भक्तिपूर्वक मेरी सेवा करता है , वह मेरा मित्र है , मुझमें स्थिर रहता है और मैं भी उसका मित्र हूँ।  

I am equally disposed to all living entities; there is neither friend nor foe to me; but those who with loving sentiments render devotional service unto Me, such person are in Me and I am in them.

Sunday, 17 November 2013

विलुप्त होने के कगार पर गंगा


डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की रिपोर्ट है कि गंगा  दुनिया की  'खतरे में शीर्ष दस नदियों' से एक है.गंगोत्री ग्लेशियर, 30.2 किमी लंबा, एक सबसे बड़ा हिमालयी ग्लेशियरों से एक है.  यह 23 मीटर की एक खतरनाक दर / वर्ष की दर से पीछे हटता जा रहा है . यह भविष्यवाणी की गई है कि वर्ष 2030 तक ग्लेशियर गायब हो जायेगा. और इसके साथ ही गंगा का अस्तित्व भी.
अब सवाल उठता है की गंगा पर बने स्थानीय परियोजनाओं का क्या औचित्य है. स्थानीय विकास के नाम पर जो मनमानी हरकत की जा रही है उसका एक विश्लेषण प्रस्तुत कर रहा हूँ. 

बाँध बनाने के बाद उत्पन्न परिस्थितियां 
  1. जल स्रोतों की कमी  
  2. घरों में दरारें. . (यह  क्षेत्र  भारत में भूकंप के सबसे अधिक संभावना वाले क्षेत्र है.) इस तरह के घरों में  रहने वाले लोगों के लिए जीवन  असुरक्षित हो गया है. 
  3. आजीविका और आय का अंत. 
  4. चराई भूमि और जंगलों की कमी है जिस पर पहाडी लोग   निर्भर करते हैं. 
  5. प्राकृतिक सौंदर्य का  सामान्य विनाश पर्यटन के माध्यम से आजीविका का अंत,भूस्खलन
  6. स्थानीय संस्कृति का अंत जो गंगा के आसपास केंद्रित है. टिहरी में भिलंगना नदी को लगभग ख़त्म कर दिया गया है. इसका कारण भागीरथी और भिलंगना के संगम पर बना विशालकाय बाँध है.इस तरह गंगा को अब विषैला बना दिया गया है.गंगा कभी  शुद्ध गुणों के लिए प्रसिद्ध थी
  7.  परंपरागत रूप से यह एक ज्ञात तथ्य यह है कि गंगा जल में कभी कीड़े नही पड़ते  वैज्ञानिक अध्ययनों से इस तथ्य की पुष्टि होती है.उसमे अब कीड़े ही कीड़े दीखते है.

दूसरी नदियों के भी बुरे हाल है यमुना पर कब्ज़ा करके शहर का फैलाव किया जा रहा है गोमती के अन्दर कूड़ा भर कर वह मकान तक निर्मित कर लिए गए. शिप्रा चम्बल के भी यही हाल है पहाड़ों पर के घने वन काट  डाले गए है और वहा रिसोर्ट बना दिए गए. 

गंगा का  भावात्मक पक्ष :
कृष्ण वाणी है, "जल स्रोतों में  मैं गंगा हूँ."
स्वामी विवेकानंद ने कहा - 'हिन्दू धर्म का गठन गीता और  गंगा' .. 
मौत के समय  से एक अरब लोगों को अपने होंठों पर उसके पानी की बूंद लालसा. 
विदेशी भूमि से भी लोग उसके प्रवाह में अपनी राख तितर बितर और खुद को धन्य मानते हैं.

ऐसी गंगा मरने के कगार पर पहुच गयी है और औद्योगिक विकास की कोई नयी गंगा बह रही है

Saturday, 16 November 2013

परमेश्वर का ध्यान


कविं पुराणमनुशासितारमणोरणीयांसमनुस्मरेद्यः। 
सर्वस्य धातारमचिन्त्यरूपमादित्यवर्णं तमसः परस्तात्।।

मनुष्य को चाहिये कि परमपुरुष का ध्यान सर्वज्ञ , पुरातन , नियन्ता , लघुतम  से भी लघुतर , प्रत्येक का पालनकर्ता , समस्त भौतिकबुद्धि से परे , अचिन्त्य तथा नित्य पुरुष के रूप में करे।  वे सूर्य की भाँति तेजवान हैं और इस भौतिक प्रकृति से परे , दिव्य रूप हैं। 

one should meditate on the omniscient, primordial, the controller, smaller that atom, yet the maintainer of the everything, whose form is inconceivable, resplendent like the sun and totally transcendental to the material nature.

Thursday, 14 November 2013

आत्मा का रहस्य .... भाग ४


आश्चर्यवतपश्यति कश्चिदेनमाश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः। 
आश्चर्यवच्चैनमन्यः शृणोति श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित्।।

कोई आत्मा को आश्चर्य से देखता है , कोई इसे आश्चर्य की तरह बताता है तथा कोई इसे आश्चर्य की तरह सुनता है , किन्तु कोई - कोई इसके विषय में सुनकर भी कुछ नहीं समझ पाते। 

Some see the soul as amazing and others describe the soul as amazing; similarly others also hear of soul as amazing and some even after having heard still have no knowledge of it.

Wednesday, 13 November 2013

Do your duty with the right attitude


What is the right attitude? This verse is the most famous verse in the Bhagavad Gita and is said to summarize its essence: You have the right only to work, never to its result. Do not be one whose motive is the results of action.
Never be attached to inaction.
Do your duty, (Karthavyam), with the right attitude. Perform your actions, in a state of Yoga, having given up attachment and being the same in success or in the lack of it. Take refuge in the intellect. Stay always in Reality, regardless of your material well being. What is Yoga? Yoga is said to be Sameness (Equanimity). Yoga is skill in work.
Literally, Yoga means uniting. It can be uniting of the self with God, of the mind with the soul, or the body with mind and soul. It is derived from the verb root: Yuj or Yoke. When you are totally absorbed in your work or activity, your body and mind are united with your self and with God.
When you have the right attitude, you will be resolute. Then your effort will not be wasted. People motivated by results are miserable. Their body may be engaged in activity but their mind is focused on the results and they are ‘divided’ not ‘united’. Those who are focused on results, cannot do a good job because their mind is not where they are. They are not absorbed in their activity.

Tuesday, 12 November 2013

शान्ति का रहस्य


आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं समुद्रमापः प्रविशन्ति  यद्वत्। 
तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिमाप्नोति न कामकामी।।

जो पुरुष समुन्द्र में निरन्तर प्रवेश करती रहने वाली नदियों के समान इच्छाओं के निरन्तर  प्रवाह से विचलित नहीं होता और जो सदैव स्थिर रहता है , वही शान्ति  प्राप्त कर सकता है , वह नहीं जो ऐसी इच्छाओं को तुष्ट करने की चेष्टा करता हो। 

A person who is not disturbed by the incessant flow of desires--that enter like rivers into the ocean which is ever being filled but is always still--can alone achieve peace, and not the man who strives to satisfy such desires.

Monday, 11 November 2013

Work does not bind a person


योगसंन्यस्तकर्माणं ज्ञानसंछिन्नसंशयम्। 
आत्मवन्तं न कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय।।४. ४१।।


जो व्यक्ति अपने कर्मफलों का परित्याग करते हुए भक्ति करता है और जिसके संशय दिव्यज्ञान द्वारा विनिष्ट हो चुके होते हैं वही वास्तव में आत्मपरायण है।  हे धनञ्जय ! वह कर्मों के बंधन से नहीं बँधता। 

Work (Karm) does not bind a person who has renounced work --- by renouncing the fruits of work --- through KarmaYog, and whose doubts about the Self are completely destroyed by Vivek, the application of Self-knowledge, O Arjun. 


Saturday, 9 November 2013

Yoga requires moderation


Neither too much sleep and food, nor too little of it: and moderation in all actions. Total absorption in the Self – no desire for anything other than the Truth or Reality. Indifference to pain. Total Conviction and No depression. One should with draw by degrees. To such a Yogi whose Rajas (passion for action) has subsided, comes the supreme bliss of Brahman. Such a person sees the Brahman everywhere, the Self in all beings, and all beings in the Self.

He who sees Krishna everywhere and all things in Krishna does not lose sight of Krishna, nor Krishna of him. That person who worships Krishna residing in all beings the same, becomes a Yogi, and whatever he does he lives in Krishna. Arjuna then asked Krishna a question: Since the mind is essentially restless, how can it attain this equanimity? What happens to a person who has faith, but has a wandering mind?

Krishna then explained that practice can bring a restless mind under control. But should someone with faith be unable to concentrate, he will still never come to harm. Such a person will attain the worlds of the righteous and after spending many years there, he will be born again in the house of the pure and righteous, or into a family of Yogis. Such a birth is indeed rare. There he comes in contact with knowledge acquired in a previous birth and tries harder than before. Even a person who is merely interested in Yoga transcends the Vedas. Some Yogis attain the Supreme Goal over several births.

The Yogi is greater than ascetics, sages, and men of action. Therefore be a Yogi. And of all Yogis, those who are absorbed in Krishna are the highest.

Friday, 8 November 2013

सात्त्विक यज्ञ


अफलाकाड़क्षिभिर्यज्ञो विधिदिष्टो य इज्यते। 
यष्टमवेति मनः समाधाय स सात्त्विकः।।

यज्ञों में वही यज्ञ सात्त्विक  है , जो शास्त्र के निर्देशानुसार कर्तव्य समझ कर उन लोगों के द्वारा किया जाता है , जो फल की इच्छा नहीं करते। 

Wednesday, 6 November 2013

कर्मयोग रहस्य ३

यदृच्छालाभसंतुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः। 
समः सिद्धावसिध्दौं च कृत्वापि न निबध्यते।।

जो स्वतः होने वाले लाभ से संतुष्ट रहता है , जो द्वंद्व से मुक्त है और ईर्ष्या नहीं करता , जो सफलता तथा असफलता दोनों में स्थिर रहता है , वह कर्म करता हुआ भी कभी बँधता नहीं। 


  

Monday, 4 November 2013

धोती पहनने की उत्तर भारतीय विधि

धोती एक पारंपरिक  भारतीय परिधान है और हम सबको धोती पहनना आना चाहिए .इसका कोई धार्मिक महत्व है या नहीं , हम  इसमें नहीं पड़ना चाहते  किन्तु कुछ नया सीखना हमेशा अच्छा होता है . वैसे सामान्य ज्ञान के लिए आपको बताते चलें  कि भारतीय संस्कृति में बिने सिले वस्त्र पहन कर ही पूजा पाठ का विधान है.
आप धोती पहनने की उत्तर भारतीय विधि इस लिंक से सीख सकते हैं .
http://www.youtube.com/watch?v=sh3Apy_6BL4

Friday, 1 November 2013

आत्मा का रहस्य। .... भाग ३


न जायते म्रियते वा कदाचिन् 
                 नायं  भूत्वा भविता वा न भूयः। 
अजो नित्यः शाश्र्वतोअयं पुराणों 
           न हन्यते हन्यमाने शरीरे।।  


आत्मा के लिये किसी भी काल में न तो जन्म है न मृत्यु।  वह न तो कभी जन्मा है , न जन्म लेता है और न जन्म लेगा।  वह अजन्मा , नित्य , शाश्र्वत तथा पुरातन है।  शरीर के मारे जाने पर वह मारा नहीं जाता। 

धनतेरस: मिथ और यथार्थ

धनतेरस को धन से जोडकर देखने की अफवाह किसी पूंजीपति द्वारा फैलायी गयी होगी जिसने धर्म और नीति के क्षेत्र मे बिकने वाले पोंगा पण्डितो को खरीद कर इस किसम की बाते फैलवाई होंगी. सच तो यह है कि दीवाली धन से ज्यादा स्वास्थ्य और पर्यावरण पर आधारित त्योहार है. इस दिन आयुर्वेद मनीषी धनवन्तरी का जन्मदिन है. उन्ही के नाम से धनवंतरी तेरस है जिसे  मठाधीषों  ने धन तेरस कहना शुरु किया. दीपावली एक ऐसा त्योहार है जिसके अपने पर्यावरणीय निहितार्थ है. मौसम मे बदलाव और दीप पर्व मे घनिष्ठ सम्बन्ध है. इसे समझते हुए कृपया पर्यावरण को नुकसान पहुचाने वाली गतिविधिया ना करे. पटाखो का प्रयोग न्यूनतम करे, चाईनीज झालरो की जगह सरसो के दिये जलाये. सरसो के दिये से एडीज मच्छर(डेंगू वाले) भागते है. गांव मे लोग मच्छरो से बचने के लिये ओडोमास की जगह सरसो का तेल लगाते है. गोवर्धन पूजा गोरू बछेरू के पालन पोषण और पर्वतो के संरक्षण से सम्बन्धित है. दीपोत्सव के धार्मिक निहितार्थ सामाजिक व्यवस्था और अध्यात्मिक उन्नति मे अत्यंत सहायक है. सभी मित्रो से करबद्ध निवेदन है कि प्रतीको को इतना महत्व ना दे कि किरदार ही बौना हो जाय.