आश्चर्यवतपश्यति कश्चिदेनमाश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः।
आश्चर्यवच्चैनमन्यः शृणोति श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित्।।
कोई आत्मा को आश्चर्य से देखता है , कोई इसे आश्चर्य की तरह बताता है तथा कोई इसे आश्चर्य की तरह सुनता है , किन्तु कोई - कोई इसके विषय में सुनकर भी कुछ नहीं समझ पाते।
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