Wednesday 30 October 2013

प्रकृति के तीन गुण.....भाग 3



ये चैव सात्त्विका भावा राजसास्तामसाश्र्च ये। 
मत्त एवेति तान्विध्दि न  त्वहं तेषु  ते मयि।।

भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं " तुम जान लो मेरी शक्ति द्वारा सारे गुण प्रकट होते हैं , चाहे वे सतोगुण हों , रजोगुण हों या तमोगुण हों।  एक प्रकार से मैं सब कुछ हूँ , किन्तु हूँ स्वतंत्र।  मैं प्रकृति के गुणों के आधीन नहीं हूँ , अपितु वे मेरे आधीन हैं। 


No comments:

Post a Comment